उत्तराखण्ड में स्थित पंचबद्री – बद्रीनाथ, भविष्यबद्री, योगध्यानबद्री, वृद्धबद्री एवं आदिबद्री panchbadri situated at Uttrakhand (Badrinath, Bhavishay Badri, yogdyan Badri, Vridh Badri and Aadibadri
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पंच बद्री का इतिहास महाभारत काल से जुडा है
महाभारत युद्ध समाप्ति के बाद पांड्वो द्वरा युद्ध के दौरान मारे गये सगे-सम्बन्धियों और अपने पित्रों की हत्या के पाप से छुटकारा पाने के लिए श्री कृष्ण द्वारा उन्हें देवभूमि जाकर परमेश्वर से क्षमा मागने को कहा गया जिससे पांड्वो के पित्रों मोक्ष की प्राप्ति और पांडव पाप मुक्त हो सके |
जिसके बाद पांड्वो द्वारा परमेश्वर को प्रशन्न करने के लिए पंचबद्री और पंचकेदार का निर्माण किया गया पंचबद्री के नाम निम्न हैं:-
1. बद्रीनाथ Badrinath
2.भविष्यबद्री Bhavishya Badri
3.वृद्बबद्री vridha badri
4.योगध्यानबद्री Yogdhyan Badri
5.आदिबद्री Aadi Badri
PanchBadri पंचबद्री
भविष्यबद्री BhavishyaBadri
मान्यता है की भविष्य में विष्णुप्रयाग के समीप पटशिला में जय-विजय नाम के दोनों पर्वत गिरने से वर्तमान बदरीधाम के दर्शन नही हो पाएंगे अतः भगवान बद्री के दर्शन तब यहीं हौंगे |
मंदिर तक जोशीमठ से 18किमी. मोटर मार्ग दुरी पर सलधार स्थल से 6किमी . की पैदल यात्रा द्वारा यहाँ पहुचा जा सकता है एवं मंदिर निर्माण आदिगुरू शंकराचार्य द्वारा की गयी थी |
बद्रीनाथ Badrinath
बद्रीनाथ भारत के उत्तर में उत्तराखण्ड राज्य में स्थित है उत्तराखण्ड के 13 जिल्लो में से एक चमोली में यह स्थित है उत्तराखण्ड को देवभूमि नाम से जाना जाता है बद्रीनाथ तक पहुचने का मार्ग कर्णप्रयाग से होते हुए जाता है कर्णप्रयाग से निकट स्थान रुद्रप्रयाग, गैरसैण,श्रीनगर हैं |
बद्रीनाथ मंदिर अलकनन्दा नदी के दाहिने तट पर समुद्रतल से लगभग 3133 मीटर की उचाई पर नर व नारायण पर्वत के पूर्व में है बद्रीनाथ विष्णु भगवान का मंदिर है जहाँ पर भगवान विष्णु की ध्यानमग्न पद्माआसन्न मूर्ति है |
श्री बद्रीनाथ में दर्शन करने का समय अप्रैल से अक्टूबर/नवम्बर तक होता है | शर्दियो में दर्शन पांडूकेश्वर में व जोशीमठ के नरसिंह मंदिर में होती है |
ब्राह्मण – दक्षिण भारत से नम्बुरिपाद (रावल)
मंदिर की स्थपना आठवी सदी में आदि गुरु शंकराचार्य ने करवाया था एवं उस समय मुख्य मूर्ति को नारद कुण्ड से निकाल कर आदि गुरु शंकराचार्य जी ने ही मुख्य मंदिर में स्थापित करवाया था मुख्य मूर्ति के पास नर एवं नारायण ,उद्धव जी,कुबेर जी तथा नारदजी की प्रतिमाये हैं, मंदिर के निकट तप्त कुण्ड है जिसमे स्नान करना स्वास्थ्य वर्धक माना जाता है ,श्री बद्रीनाथ मंदिर तीन भागो में बटा है सिंह द्वार,मण्डल एवं गर्भग्रह/मुख्य प्रतिमा है }
महाभारत एवं पुराणों में इन्हें मुक्तिमुद्रा, योगसिद्धा,बदरीवन,बद्रिकाआश्रम,विषाला,नरनारायणा आदि नाम से सम्बोधित किया गया है |
यहाँ नजदीक में तप्तकुण्ड,नारदकुण्ड,शेष नेत्र,नीलकंठ शिखर,उर्वशी मंदिर ,ब्रहम कपाल,माता मूर्ति मंदिर ,भीम पुल ,माणा गाँव,एवं वसुधारा स्थित है |
वृद्धबद्री VridhBadri
वर्तमान बद्रीनाथ धाम से पूर्व बद्री भगवान इसी स्थान पर रहते थे इस मंदिर को विश्वकर्मा द्वारा स्थापित किया गया था मान्यता अनुसार कलयुग की शरुआत के समय ही भगवान बद्रिनाथ यहाँ से वर्तमान बदरीनाथ धाम में चले गये थे तथा भविष्य में भगवान बद्री के दर्शन भविष्यबद्री में हौंगे जिस कारण भविष्यबद्री इस स्थान को नाम दिया गया |
आप भविष्यबद्री,बद्रीनाथ,और वृद्धबद्री में अंतर करने के लिए ध्यान में रखिये जहाँ अभी बद्री भगवान के दर्शन होते हैं वह स्थान है बद्रीनाथ ,जहाँ पहले होते थे वह स्थान है वृद्धबद्री ,एवं जहाँ भविष्य में भगवान बद्री के दर्शन हौंगे वह स्थान है भविष्यबद्री |
योगध्यानबद्री Yogdyan Badri
यहाँ भगवान बद्री की योगध्यान मुद्रा में स्थापित मूर्ति है जिस कारण यहाँ योगध्यान नाम पड़ा यह स्थान जोशीमठ से 22किमी की दुरी पर पांडुकेस्वर के पास है |
कहा जाता है की इसी प्रदेश जिसे पहले पांचाल प्रदेश के नाम से जाना जाता था यहीं पर पान्डु एवं कुंती ने विवाह किया था
आदिबद्री AadiBadri
आदिबद्री चमोली के कर्णप्रयाग से 18 किमी. की दुरी पर स्थित मंदिर समूह है यहाँ अनेक मंदिर एक साथ है तथा मंदिर निर्माण गुप्तकाल में पांड्वो द्वारा किया गया था |
कहा जाता है की मंदिर निर्माण के समय पांड्वो को कहा गया था कि मंदिर का निर्माण ऐसे समय पर करें जब सभी सो जाये और सभी के उठने से पूर्व अतः मंदिर का निर्माण पांडव रात के समय करते थे तथा सबके उठने से पूर्व रोक देते थे परन्तु एक दिन एक किशान जो कभी खेतो में काम नही करता हल नही लगाता था जल्दी उठ खेतो में पहुँच गया और जब यह बात पांड्वो को पता चली तब उन्हें काम रोकना पड़ा जिस कारण मंदिर निर्माण आधा ही हो पाया और यहाँ का नाम आदिबद्री पड़ा |
तथा दूसरी मान्यता है की मंदिर निर्माण गुप्तकाल में होने के कारण किसी को नही पता की मंदिर का निर्माण कब हुआ
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