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Nanda devi Raj jaat chamoli details information about nanda raj jaat hindi uttarakhand nanda devi jaat yatra चमोली नंदा देवी राज जात यात्रा 246443

नंदा देवी राज जात की इस कहानी में बेहद अलग अनुभव है जहाँ एक ओर देवकथा है तो दूसरी ओर बेटी की विदाई, हर बारह साल में होने वाली इस जात में देश-विदेश के लोग आते हैं यात्रा के लिए स्थानीय लोगों के साथ सरकार व्यवस्थाओं में जुट जाती है साथ ही हर साल Nanda Devi Rajjaat का आयोजन होता है परन्तु हर 12 साल में यह यात्रा एक खास मौके पर आयोजित की जाती है जो की चौसिंगिया खाडू से जुडी है |

चौसिंगिया खाडू Chausingia khadu

Chau singiya Khadu चौसिंगिया खाडू नाम का अर्थ चार सिंह वाला खाडू (एक तरह की बकरी) होता है नंदा देवी राज जात यात्रा की शुरुवात इसी चौसिंगिया खाडू के जन्म से होनी शुरू होती है कहा जाता है की माँ नंदा के दोष लगने के बाद चौसिंगिया खाडू का जन्म होता है

Nanda devi Raj Jaat

Nanda Devi Rajjaat Nauti, Chamoli

नंदा देवी राजजात उत्तराखंड राज्य की एक प्रसिद्ध धार्मिक यात्रा है, जो लगभग हर 12 साल में आयोजित होती है। इस यात्रा का महत्व इस बात से है कि यह पर्वतीय क्षेत्र में होती है और यहाँ के स्थानों पर चलना बहुत कठिन होता है। इस यात्रा के दौरान लोग पर्वतीय क्षेत्रों में चलते हुए, गांवों में रुकते हुए और धार्मिक आयोजनों में भाग लेते हुए अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं।

इसका पूरा मार्ग 280 किलोमीटर लंबा होता है। यह यात्रा उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में स्थित नंदादेवी मंदिर, नौटी से शुरू होती है और हिमालय की दुर्गम घाटियों तक होती है, इसमें प्राकृतिक सौंदर्य और धार्मिक आस्था का एक अद्भुत संगम होता है |

नंदा देवी राज जात की शुरुवात

नंदा देवी राज जात की शुरुवात नंदा देवी मंदिर नौटी से होती है जिसके बाद विभिन्न स्थानों के निशाण और छंतोली इस यात्रा का हिस्सा बनते हैं और यात्रा के साथ ही आगे बढ़ते हैं | निशाण और छंतोली ले जाने वाले व्यक्ति बिना चप्पल जुते पहने इन्हें ले जाते हैं और माता की डोली को सजाया जाता है जिसमे बैठा कर उन्हें ससुराल के लिए विदा किया जाता है |

नंदा देवी राज जात से जुडी दो कहानियां हैं story of Nanda devi raj jaat

First story of Nanda devi rajjaat नंदा देवी राज जात की शुरुवात के विषय में कहा जाता है की राज जात का प्रारंभ गढ़वाल के राजवंश द्वारा की गयी है |

First story of Nanda devi rajjaat

second story of Nanda devi rajjaat नंदा देवी राज जात की शुरुवात से जुडी दूसरी कहानी के  अनुसार हेमंत ऋषि और मेणा के घर नंदा के जन्म हुआ जिसके बाद बालपन में ही नंदा का विवाह भगवान शिव से हुआ शिव कैलाश पर रहते हैं जहां की बेहद कठिन जलवायु, ठंड और बर्फ रहती है। विवाह के बाद मां नंदा को मायके बुलाया जाता है फिर कुछ समय के अंतराल के बाद कैलाश यानी ससुराल पूरे रीति रिवाजों के साथ विदा किया जाता है। और इस प्रकार नंदा को ससुराल तक विदा करने के लिए नंदा देवी राज जात का आयोजन पुरे रीती रिवाजों के साथ किया जाता है| path

निशाण Nishaand देखने में लम्बा होता है जो की स्थानीय देवी-देवताओं के प्रतिक के रूप में जाना जाता है और छंतोली Chhantoli एक प्रकार की छाता जैसी दिखाई है जो की सामान्यतः रिंगाल से बनाई जाती है| जिसे पारम्परिक रूप से बनाया जाता है यात्रा में निशाण और छंतोली दोनों ही गढ़वाल-कुमाऊ के विभिन्न स्थानों से यात्रा में जुड़ते हैं |

नंदा देवी राजजात की शुरुवात का पहला क्रम

नंदा देवी राज जात Nanda Devi Raj jaat भाद्र पथ के प्रथम नवरात्र में कांसुवा (स्थान) के कुंवर चौसिंगिया खाडू, रिंगाल की छंतोली के साथ नौटी पहुचते हैं इसकी शुरुवात गढ़वाल के राजा द्वारा लगभग 9वीं शताब्दी में की गयी थी | यात्रा की शुरुवात तब होती है जब कांसुवा गांव से छंतोली नौटी के मंदिर में पहुचती है फिर पवित्र प्रतिमा को स्थापित करने के बाद यात्रा का शुभारम्भ किया जाता है |

नंदा देवी राज जात का प्रथम पढाव : ईडाबधाण Idabadhan

navigation Nanda devi Raj Jaat ईडाबधाण देवी नंदा की यात्रा के समय जहाँ सबसे पहले यात्रा पहुचती है वह स्थान है ईडाबधाण, चमोली | ईडाबधाण  से जुडी एक रोचक कथा जिसके अनुसार जब एक जब एक बार नंदा देवी एक बार अपने ससुराल की ओर जा रही थी तब उन्होंने ईडाबधाण Idabadhan ganw  की ओर देखा और उन्हें गाँव बेहद पसंद आया जब माँ नंदा गांव में पहुचती हैं तो जमन सिंह जधोड़ा नाम के व्यक्ति द्वारा उनका खूब आदर सत्कार किया गया और उन्होंने माता से आग्रह किया की आप जब भी ससुराल जायें यहाँ जरुर आये तब से ही माता ससुराल जाते समय ईडाबधाण गांव में जरुर जाती हैं | इसके बाद दुसरे दिन यात्रा वापिस नौटी (नंदा देवी जात का दूसरा पढ़ाव) पहुचती है |

इसके बाद माँ नंदा देवी ससुराल के लिए विदा की जाती हैं और इस दौरान स्थानीय लोगों द्वारा पारम्परिक गीत गाये जाते हैं :  “चली बेटी चली नंदा बेटी तेरी विदाई कराये, भादो मैना तेरी डोली सजाये”

नंदा देवी राज जात का तीसरा पढाव : कांसुवा Kansuwa

कांसुवा गांव के विषय में कहा जाता है की गढ़वाल नरेश के छोटे भाई के गांव होने के कारण इसे कांसुवा Kansuwa गांव के रूप में जाना जाता है| नंदा देवी राज जात का आयोजन भी कांसुवा सँभालते हैं | फिर इस गांव से विदाई के समय कांसुवा के लोग महादेव मंदिर कांसुवा तक देवी माता को भेजने आते हैं|

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नंदा देवी राज जात का चौथा पढाव : चांदपुर गढ़ी – सेम गांव Chandpur Garhi – sem Ganw

चांदपुर गढ़ी में राज राजेश्वरी देवी का मंदिर है और राजा के महल के अवशेष भी हैं जिन्हें संरक्षित किया गया है जिसके बाद अगला पढ़ाव सेम गांव Sem Ganw, chamoli होता है यहाँ से आगे सिन्तोली धार, तिलखणी धार होती हैं|

Chandpur garhi

माँ नंदा देवी पांचवा पढ़ाव कोटियाल गांव Kotiyal gaw

कोटियाल गांव माना जाता है की कोटियाल गांव में माँ नंदा से कोटि प्रार्थना की गयी और ससुराल जाने का आग्रह किया गया जिस कारण इस गांव का नाम कोटियाल पढ़ा | यहाँ कोटियाल गांव में नंदा के दो मंदिर लाटू और जीतू बगड्वाल के मंदिर हैं|

घतोड़ा गांव Ghatoda Gaw

घतोड़ा गांव के विषय में कहा जाता है की यहीं दो असुर देवी के पीछे पढ गए थे जिन्हें भगाने के लिए देवी ने दो गणों को प्रकट किया जिसमे जय-विजय विजय होकर असुरों को भगाने में सफल हुए |

नंदा देवी राज जात का छटवां पढाव : भगोती Bhagoti gaw

Joshimath importance भगोती गांव का नाम भगवती के नाम पर पढ़ा जिस कारण गांव को भगोती के नाम से जाना जाता है | साथ ही यह नंदा देवी के मायके क्षेत्र के अंतिम गांव के रूप में जाना जाता है |

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नंदा देवी राज जात का सातवां पढाव कुलसारी Kulsari Gaw

कुलसारी गांव का नाम माँ नंदा के काली रूप में पूजे जाने के कारण पढ़ा | साथ ही कहा जाता है की यहाँ काली यंत्र भूमिगत है जिसे जात यात्रा के दौरान अमावस्या के दिन निकाला जाता है और पूजा की जाती है और पूजा होने के बाद पुनः इसे भूमिगत कर दिया जाता है | इसके बाद यात्रा थराली क्षेत्र में प्रवेश करती है |

नंदा देवी राज जात का आठवां पढ़ाव चेपडो – 9वां पढ़ाव नन्दकेसरी chepdon- Nand kesari

चेपडो में यात्रा पहुचने पर रात को परम्परिक गीत-जागर का आयोजन किया जाता है जिसके बाद यात्रा नन्दकेसरी |

नन्दकेसरी एक अहम पढ़ाव होता है जहाँ की तीन यात्रा नंदा देवी, कुरुड-बाधण और कुमाऊ से आने वाली यात्रा का संगम होता है| कुरुड से ही प्रतिवर्ष जात का आयोजन भी किया जाता है साथ ही कुरुड में देवी के दो मंदिर जिन्हें थान के नाम से भी जाना जाता है उपस्थित हैं कुरुड-बधाण और कुरुड-दशोली |

कोटभ्रामरी, बागेश्वर Kotbharamari Bageshwar

कोटभ्रामरी गांव के बारे में कहा जाता है की यहाँ माँ नंदा देवी ने अरुण नाम के दैत्य को मारने के लिए भौरे का रूप लिया जिस कारण इस स्थान को कोटभ्रामरी के रूप में जाना जाता है | जिसके बाद इस स्थान से यात्रा “Gwaldam” से होते हुए नन्दकेसरी पहुचती है |

Nanda devi Raaj jat hindi information

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