GhantaKarn Ghandiyal Devta Lostu Badiyar garh Tehri Raj jaat Uttarakhand Tehri district घंटा कर्ण घंडियाल देवता राजजात बड़ीयार गढ़ टिहरी उत्तराखण्ड

घंटाकर्ण घंडियाल देवता को बद्रीनाथ धाम के रक्षक के रूप में जाना जाता है टिहरी लोस्तू बढ़ियार गढ़ घंडियाल देवता मंदिर रक्षक देवता क्षेत्रपाल राजजात,
Ghantakarna Ghandiyal devta
photo by lingwan ji

घंडियाल देवता टिहरी Ghandiyal Devta, Tehri

घंटाकर्ण घंडियाल देवता राजजात टिहरी में बड़े हर्षो उल्लास से मनाया जाता है यह राजजात हर 6 या 12 साल के अंतराल में मनाया जाता है टिहरी उत्तराखण्ड का जिला है घंडियाल देवता की यह जात उत्तराखण्ड के टिहरी जिले के बड़ीयार में मनाया जाता है जात में स्थानीय लोगों की श्रद्धा है और स्थानीय लोग जात में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं स्थानीय क्षेत्रों में डागर, फैगुल नैलचमी, हिंडाऊ हैं जात लम्बे समय 9दिन 9 रातों तक मनाई जाती है इससे यह साफ होता है स्थानीय लोगों की घंडियाल देवता में बहुत अधिक श्रद्धा है ।

माता चंद्रबदनी टिहरी

Lord Ghandiyal Devta भगवान घंडियाल देवता

घंडियाल देवता उत्तराखण्ड के विभिन्न क्षेत्रों में पूजे जाते हैं घंडियाल देवता के बारे में कहा जाता है कि घंडियाल देवता भगवान अभिमन्यु के अवतार और भगवान शिव के भक्त हैं और इन्हें रक्षक देवता के रूप में पूजा जाता है।

बड़ीयार गढ़ तक कैसे पहुंचे How to reach Badiyar Garh

बड़ीयार गढ़ टिहरी जिले में स्थित है यहां पहुंचने के लिए आपको पहले श्रीनगर गढ़वाल पहुंचना होगा जो कि पौड़ी जनपद में स्थित है फिर आपको आसानी से श्रीनगर से गाड़ी बस या टैक्सी मिल जायेंगी जिन से आप आसानी से यहां तक पहुंच सकते हो

श्रीनगर – बड़ियार गढ़ तक रास्ता Way to Srinagar – Badiyar Garh

गढ़वाल – देहरादून – ऋषिकेश – श्रीनगर गढ़वाल (पौड़ी)

कुमाऊं – अल्मोड़ा – चमोली – रुद्रप्रयाग – श्रीनगर गढ़वाल (पौड़ी)

श्रीनगर पहुंचने के बाद आपको हरिद्वार बस अड्डा पर पहुंचना है यहीं से देहरादून, हरिद्वार के लिए लगती हैं यहीं पर से आप आसानी से बड़ीयार गढ़ की गाड़ी में बैठ सकते हैं।

देहरादून या कुमाऊ के किसी भी क्षेत्र में पहुंचने पर आप आसानी से ऊपर बताए गए जिलेवार रास्ते से यहां तक पहुंच सकते हैं।

घंटा कर्ण घंडियाल देवता टिहरी Ghanta Karn Ghandiyal devta, Tehri

घंटा कर्ण घंडियाल देवता टिहरी Ghanta Karn Ghandiyal devta, Tehri

घंटाकर्ण को बद्रीनाथ धाम का रक्षक कहा जाता है घंटा कर्ण घंडियाल देवता की बड़ी ही रोचक कथा है कहा जाता है कि घंटा कर्ण राक्षस योनि में जन्मे थे परन्तु वे महादेव के भक्त थे वे महादेव की भक्ति में इतने अधिक मग्न थे कि वे किसी और से भी महादेव शिव का नाम सुना पसंद नहीं करते थे ।

घंटा कर्ण नाम कैसे पड़ा?

घंटाकर्ण नाम दो शब्दो से मिलकर बना है घंटा यानी घंटी और कर्ण यानी कान जो मिलकर बने घंटाकर्ण, घंटाकर्ण ने कानों में घंटी लगा ली जिस कारण उन्हें घंटाकर्ण के नाम से जाना जाने लगा।

घंटाकर्ण महादेव के इतने बड़े भक्त थे कि वे शिव के नाम भी किसी और से सुनना पसंद नहीं करते थे जिस कारण उन्होंने बचपन में अपने कानो में घंटी लगा ली थी तभी से उन्हें घंटा कर्ण के नाम से जाना जाने लगा ।

फिर वक़्त के साथ जब वे बड़े हुए तो महादेव उनकी भक्ति से प्रसन्न हुए और उन्हें वर मांगने को कहा और घंटा कर्ण इस पर खुश हुए परन्तु वे अपने राक्षस योनि के जन्म से खुश नहीं थे जिस पर उन्होंने महादेव से इसका हल मांगा फिर महादेव ने उन्हें बताया कि यह तो विष्णु कर सकते हैं परन्तु घंटा कर्ण को महादेव के अलावा किसी और की उपासना नहीं करनी थी जिसके बाद महादेव ने घंटा कर्ण को बताया कि विष्णु का अवतार कृष्ण रूप में होने वाला है फिर तुम उनसे वहीं मिलना तुम्हे वे मुक्ति प्रदान करेंगे, जिसके बाद घंटा कर्ण भगवान कृष्ण से मिलने गए पर वे कैलाश पर गए थे फिर घंटा कर्ण भी वहीं चले गए जहां कृष्ण को साधना में पाया फिर घंटाकर्ण ने कृष्ण को ध्यान से जगाया और फिर उन्हें सारी बात कह सुनाई जिस पर कृष्ण ने उन्हें राक्षस योनि से मुक्ति प्रदान की और साथ ही बद्रीनाथ धाम का द्वारपाल यानी कि रक्षक भी बना दिया तभी से घंटाकर्ण घंडियाल देवता को बद्रीनाथ धाम के रक्षक के रूप में जाना जाता है।

Buransh research by Tehri boy (Corona)

घंडियाल देवता सम्बन्धी जानकारी Information related Ghandiyal devta

हमारे द्वारा आपके लिए घंडियाल देवता बड़ियार गढ़ टिहरी सम्बन्धी अधिक से अधिक जानकारी प्रदान की गई है यदि आप किसी प्रकार का सुझाव या जानकारी देना चाहते हैं तो आप कॉमेंट या ईमेल के जरिए हमसे सम्पर्क कर सकते हैं (ईमेल करने के लिए क्लिक करें)

 

1 thought on “Ghantakarna Ghandiyal devta

  1. Pingback: Daat Kali Mandir -

Leave a Reply

We use cookies to ensure that we give you the best experience on our website.

You cannot copy content of this page