उत्तराखण्ड का लोकपर्व फूल देई कैणी और फूल-फूल खाजा फूलों और बच्चों का त्यौहार Phool dei phool phool khaja Uttarakhandi festival
फूल देई हिन्दू कैलेन्डर के पहले दिन चैत्र मास की सक्रान्ति को मनाया जाता है इस दिन बच्चे अपनी किंकरी यानी बांस की टोकरी और फूल लेकर अपने आस पास के घरो में इस त्यौहार को मनाने चल देते हैं, बसन्त के त्यौहार की शुरआत में इस त्यौहार की अलग ही रौनक रहती है |
उत्तराखण्ड का लोकपर्व फूल देई Uttarakhand festival phool dei
फूल देई यानी फूल-फूल खाजा के नाम से जाना जाने वाला यह त्यौहार जैसे ही मन में आता है एक छवि उभरने लगती है जिसमे छोटे-छोटे बच्चे फूल और टोकरी लेकर गांव में घूमते हैं और एक नजदीकी परिवारों को शुभकामनायें देते हैं की उनकी आने वाली फसल से उनके भकार यानि की बर्तन जिसमे वो फसल को रखते हैं भरा रहे जिनकी कुछ लाइने नीचे लिखी हैं
फूल देई, छम्मा देई,
देणी द्वार, भर भकार…!
फूल देई मनाने का तरीका How Ful dei being celebrated
फूल देई मुख्यरूप से फूलों का त्यौहार है जिसमे बच्चे फूल देई के त्यौहार से एक दिन पहले अपने आसपास उगने वाले फूलों को जमा करते हैं जिसमे बुरांश, आडू, पोलम,फ्यूंली, लाई, ग्वीर्याल, किनगोड़, हिसर और तरह-तरह के वो फूल जो आजकल उगते हैं को जमा करते हैं और फिर उन्हें हर घर की देहलीज पर डालते हैं और कहते हैं फूल देई, छम्मा देई, देणी द्वार, भर भकार…! यह एक प्रकार की शुभकामनायें होती हैं जिनमे बच्चे पकने वाली फसल के लिये शुभकामनायें देते हैं|
बैरास कुण्ड BAIRAS KUND CHAMOLI
फूल देई से जुडी कहानियाँ Story of Phool deii
फूल देई से जुडी कुछ कहानियाँ प्रचलित हैं जिनमे से कुछ कहानियों को आपके लिये नीचे जोड़ा जा रहा है
भगवान शिव से जुडी फूल देई कथा Lord shiva and Phool deii
जब भगवान शिव एक बार अपनी तपश्या में अत्यधिक लीन हो गये और कई साल बीत गये तब माँ पार्वती ने भगवान शिव को तपश्या से जगाने की सोची परन्तु उन्हें यह भी ज्ञात था की तपश्या में विघ्नं डालने पर उन्हें शिव के क्रोध का सामना करना पड़ सकता है इसलिए माँ पार्वती ने सभी शिव गणों को बच्चो का स्वरुप देने के लिये कहा और भगवान शिव को उनकी तपश्या से जगाया, जिस पर भगवान शिव बच्चो को देखकर क्रोधित तो नही हुये पर इस दिन को फूल देई के नाम से जाना जाने लगा |
धान्यपुर्ती
फूल देई से जुडी देवराज इन्द्र और शिवकथा Phool dei story related with Lord shiva and Indra
जब एक बार धरती और स्वर्गलोक पर असुरो का राज हो गया था तब इन्द्र ने असुरो से मुक्ति के लिये भगवान भोलेनाथ का ध्यान किया जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने इन्द्र के कहने पर पांच असुरो का वध किया जिस पर भगवान शिव ने कहा की आपने सिर्फ पांच असुरो के अन्त के लिये क्यों कहा ?
जिस पर इन्द्र ने उत्तर दिया की पांच असुरो की मृत्यु से असुरो का अंत भी नही होगा और व्यर्थ का खून भी नही बहेगा, जिस पर भगवान शिव ने इन्द्र से एक और वर मांगने को कहा तब इन्द्र ने कहा की आपने पहले शब्द केदार से अपने वाक्य की शुरुवात की जिसके कारण इस स्थान का नाम केदार रहेगा और आप यहीं विराजमान रहेंगे जिसपर भगवान शिव ने तथास्तु कहा और फिर अंतर्ध्यान हो गये, परन्तु कुछ समय बाद मन्दिर बर्फ से ढक गया जिसके बाद इन्द्र मन्दिर में पूजा अर्चना ना कर सके, परन्तु चैत्र मास के पहले दिन जब मन्दिर से बर्फ हटी तो इन्द्र ने पूजा की जिस पर भगवान इन्द्र द्वारा इस दिन को बड़े हर्ष के रूप में त्यौहार के रूप में मनाया गया जिसे आज हम फूल-फूल खाजा के रूप में मानते हैं |
फूल देई सुझाव Phool dei suggestions
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